वक्फ के शहंशाह जमीन के सौदागर
या जहन्नम के खरीदार
1 months ago
Written By: अरसद खान
वक़्फ़ के शहंशाह ज़मीन के सौदागर, जहन्नम के मेहमानवक़्फ़ के नौकर शातिर मुतवल्ली
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से एक सवाल, आइए तालियाँ बजाएँ उन मुतवल्लियों और वक़्फ़ बोर्ड के शहंशाहों के लिए, जिन्होंने अल्लाह की दी हुई ज़मीन को अपनी जागीर समझ लिया! कल तक जो ख़ुद को ख़ादिम-ए-वक़्फ़ कहकर सीना ठोकते थे, आज अपनी चमचमाती गाड़ियों में बैठकर वक़्फ़ की ज़मीन को बाज़ार का माल बना रहे हैं। वाह, क्या तरक़्क़ी है! यह सिर्फ ज़मीन बेचना नहीं, इन्होंने तो ज़मीर का सौदा भी कर डाला है। वक़्फ़ संपत्ति में खुर्द-बुर्द करने वाले, दोज़ख़ का ईंधन, जन्नत का सपना।
ख़ादिम या ख़रीद-फ़रोख़्त का उस्ताद?
वक़्फ़ की संपत्ति, जो यतीमों, ग़रीबों, मस्जिदों और मदरसों के लिए वक़्फ़ की गई थी, अब इन साहबान की निजी जेब का इत्र बन चुकी है। इन्हें बनाया गया था संरक्षक, मगर इन्होंने सौदागर बनने में ज़रा भी देर नहीं की। इनके कारनामों की फेहरिस्त लम्बी है।
इनके लंबे कुर्ते, चमकती टोपियाँ और भारी-भरकम दाढ़ियाँ देखकर लगता है मानो ईमान का पूरा ठेका इन्हीं के पास है। मगर हक़ीक़त? ये तो वक़्फ़ की ज़मीन को लूटकर अपनी दुनिया चमकाने में मशगूल हैं। अल्लाह पाक की संपत्ति को खुर्द-बुर्द करना इनके लिए बस एक बिज़नेस डील है। लेकिन ये भूल गए कि यह धोखा सिर्फ़ इंसानों से नहीं, उस रब से भी है, जिसके सामने हिसाब का दिन तय है।
आलीशान बंगले, जहन्नम का परवाना-
हर वो लोग जो वक़्फ़ की ज़मीन बेचकर अपने लिए महल और मर्सिडीज़ खरीद रहा है, एक प्यारा-सा पैग़ाम, मुबारक हो, आप दोज़ख़ की आग के लिए प्रीमियम क्वालिटी का ईंधन बन रहे हैं! वह आलीशान बंगला, वह विदेशी पढ़ाई, वह चमचमाती गाड़ी, ये सब आपकी खुशहाली नहीं, बल्कि आपके ज़मीर की चिता सजा रहे हैं।
वक़्फ़ एक्ट 1995 तो बस आपको जेल की हवा खिलाएगा, आपका ओहदा छीनेगा। मगर क़यामत का क़ानून? वह ऐसी सज़ा देगा कि आपकी सारी तरक़्क़ी धूल में मिल जाएगी। ज़रा सोचिए, जब आप उस कब्र में लेटेंगे, जो शायद वक़्फ़ की ज़मीन बेचकर बनाई गई होगी, तो वहाँ न मखमली टोपी बचेगी, न कुर्ते की शान। बस बचेगा आपका वह ग़बन, जो यतीमों और ग़रीबों का हक़ मारकर कमाया गया।
मालिक की ग़लतफहमी, दोज़ख़ की हक़ीक़त-
मुतवल्ली साहब, आप ख़ुद को मालिक समझने की भूल कर रहे हैं। वक़्फ़ की ज़मीन का मालिक सिर्फ़ अल्लाह है। आप? आप तो बस उस धोखे की मिसाल हैं, जिसकी सज़ा दुनियावी अदालत से शुरू होकर जहन्नम की भट्टी में ख़त्म होगी। वह दौलत, जो आपने वक़्फ़ की ज़मीन बेचकर कमाई, वह दौलत नहीं, बल्कि क़यामत तक की लानत का दस्तावेज़ है।
अभी वक़्त है, ऐ ख़ादिमों! ज़मीर को जगाइए, हिसाब को साफ़ कीजिए। वरना, वह आग जो आपने अपनी हरकतों से सुलगाई है, वही आपका इंतज़ार कर रही है।
जब क़यामत के दिन आपसे पूछा जाएगा, यतीमों का हक़, ग़रीबों का हिस्सा, मस्जिदों की ज़मीन कहाँ गई? तो क्या जवाब देंगे? अपनी मखमली टोपी दिखाएँगे? या चुपके से जहन्नम की आग में कदम रख लेंगे? वक़्फ़ की ज़मीन आपकी जागीर नहीं, आपकी ज़िम्मेदारी थी। और उस ज़िम्मेदारी का हिसाब, चाहे दुनिया में हो या आख़िरत में, देना तो पड़ेगा ही।